Monday, 9 October 2017

नवदुर्गा पर्व पर खुटेही रीवा मे श्रधालु


भ्रष्ट अधिकारियों को भाजपाइयों का संरक्षण

भ्रष्ट अधिकारियों को भाजपाइयों का संरक्षण

 इन दिनों सोशल मीडिया पर मध्यप्रदेश सरकार के संस्कृति संचालनाय के पूर्व संचालक श्रीराम तिवारी को लेकर एक लम्बी बहस छिड़ी हुई है बात जहां तक श्रीराम तिवारी की करें तो श्रीराम तिवारी जब नौकरी में थे तब भी वह चर्चाओं में थे उस समय जो चर्चायें होती थीं वह उनके द्वारा प्रदेश में अपने संस्कृति संचालनालय द्वारा करवाये जा रहे जश्नों के खर्चोँ को लेकर हुआ करती थीं, लेकिन आज जब वह सेवानिवृत्त हो गये तब भी उनका चर्चाओं में छाया रहना इस बात को साबित करता है कि कुछ तो है जो तिवारी को लेकर इन दिनों चर्चायें गर्म हैं फिर चाहे उनके खिलाफ 100 करोड़ रुपये की अनुपातहीन सम्पत्ति का मामला हो, हालांकि इस मुद्दे को लेकर तरह-तरह के आरोप सोशल मीडिया पर छाये हुये हैं जब बात श्रीराम तिवारी की होती है तो उसी के साथ ही शिवराज सरकार के एक और अफसर डीएन शर्मा का भी नाम आ ही जाता है। क्योंकि यह दोनों ही अधिकारी अपनी सेवानिवृत्ति के बाद मीडिया को अपना कारोबार चुना, बात जहां तक श्रीराम तिवारी की है तो श्रीराम तिवारी पर 100 करोड़ से अधिक अनुपातहीन सम्पत्ति की शिकायत प्रधानमंत्री से लेकर लोकायुक्त मध्यप्रदेश तक की गई और उनके खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत जांच की कार्यवाही की मांग तक की गई, हालांकि श्रीराम तिवारी की इस तरह की शिकायतें करने के मामले में पूर्व विधायक एवं बहुजन समाज पार्टी के नेता किशोर समरीते ने उनकी यह शिकायत प्रधानमंत्री से करते हुए तिवारी की अवैध व अनुपातहीन सम्पत्ति की जांच सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय से कराने की मांग की है जबकि भोपाल के वकील यावर खान ने शपथ पत्र देकर प्रदेश के उप लोकायुक्त से की गई शिकायत में तिवारी की अधिकांश सम्पत्ति के सबूत अपनी शिकायत में साक्ष्य के रूप में पेश किये। इन सभी शिकायतों की जांच कब होगी यह भविष्य बताएगा लेकिन यह जरूर है कि श्रीराम तिवारी के इन दिनों चर्चा में रहने के साथ ही तरह-तरह की चर्चाएं लोग चटकारे लेकर दिखाई दे रहे हैं, लोगों का कहना है कि यह वही श्रीराम तिवारी हैं जो चाहे दिग्विजय सिंह की सरकार हो या मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की सरकार दोनों ही सरकारों के नाक के बाल रहे हैं, तो वहीं शिवराज की सरकार में तो श्रीराम तिवारी ने जिस तरह के जश्नों का आयोजन किया जिसमें भाजपा सांसद हेमा मालिनी से लेकर तमाम नृत्यांगनाओं के नृत्य कराकर जनता से लेकर सत्ताधीशों तक को मंत्रमुग्ध कर दिया। लेकिन इन सब जश्नों के साथ-साथ क्या-क्या खेल हुए यह भी चर्चाओं में हैं तो लोग तत्कालीन संस्कृति विभाग के मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा के योगदान को भी स्मरण करते नजर आ रहे हैं, लक्ष्मीकांत शर्मा के साथ क्या हुआ यह तो सभी जानते हैं। लेकिन सवाल यह उठता है कि अपनी शासकीय सेवा में रहते हुए श्रीराम तिवारी ने करोड़ों रुपये का गोलमाल कैसे किया यह शोध और जांच का विषय है, लेकिन फिर भी इन सब घोटालों के चलते श्रीराम तिवारी सत्ताधीशों से लेकर अपने प्रशासनिक आकाओं की नजरों में हमेशा बने रहे, यह कला भी श्रीराम तिवारी में है और इसी कला का खेल खेलते हुए उन्होंने अपने हर प्रमुख सचिव को अपने शीशे में ढालकर रख दिया अब यदि उनके कार्यकाल के दौरान हुए घोटालों की बात की जा रही है तो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को इन घोटालों की जांच करा लेना चाहिए इसके साथ ही श्रीराम तिवारी के कार्यकाल के दौरान उनके जो-जो प्रमुख सचिव रहे और उन्होंने हर वर्ष उनकी बेहतर सीआर भी लिखते चले गये, इसके पीछे भी तो कोई कारण होगा, जब जांच हो तो उन प्रमुख सचिवों के द्वारा श्रीराम तिवारी के द्वारा लिखी गई बेहतर सीआर को भी जांच में शामिल किया जाए, ऐसी चर्चाएं इन दिनों राजनैतिक क्षेत्र में जारी हैं, खैर मामला जो भी हो लेकिन इस सरकार में जहां एक ओर जश्न का दौर खूब चला तो वहीं किसानों के लिये तमाम लुभावने आयोजनों का भी कार्यक्रम खूब बढ़चढ़कर इस सरकार के द्वारा कराये गये और उन सब कार्यक्रमों में पानी की तरह करोड़ों रुपये खर्च किये गये लेकिन उसका लाभ न तो किसानों को मिला, हाँ यह जरूर है कि जश्न देखकर प्रदेश की जनता बाकी सभी मुद्दों को भूलती रही और इसी का फायदा उठाकर श्रीराम तिवारी ने अपने विभाग प्रमुखों और अपने मंत्रियों के चहेते बन यह सब खेल खेला गया। यह श्रीराम तिवारी की अपनी कलाबाजी है जो उन्होंने संस्कृति विभाग में रहकर यह सब खेल खेला। खैर, मामला जो भी हो लेकिन फिलहाल तो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को श्रीराम तिवारी के खिलाफ की गई इन शिकायतों की एक किसी निष्पक्ष एजेंसी से जांच करा लेनी ही चाहिए ऐसा लोगों का मानना है तभी तिवारी पर लगे आरोपों की हकीकतों का खुलासा हो सकेगा और श्रीराम तिवारी के साथ-साथ और कौन-कौन इसमें शामिल थे और इतने सब भ्रष्टाचार होने के बावजूद भी श्रीराम तिवारी की बेहतर सीआर कैसे लिखी जाती रही इसका भी खुलासा हो सकेगा? फिलहाल तो श्रीराम तिवारी को लेकर जिस तरह की चर्चाएं इन दिनों वाटसएप पर चल रही हैं उन चर्चाओं पर विराम तभी लग पाएगा जब मुख्यमंत्री आगे बढ़कर श्रीराम तिवारी के खिलाफ जांच कराने के आदेश दें, क्योंकि मुख्यमंत्री का इससे कुछ लेना देना नहीं, चाहे श्रीराम तिवारी हों या एनडी शर्मा इन दोनों ने जो कमाल सेवा में रहते किया या नहीं किया यह तो जांच के बाद ही पता चल सकेगा और लोगों की शिकायतों में कितनी दम है इसका भी खुलासा जांच के उपरांत ही हो पाएगा कि कौन सही है और कौन गलत है?daily india: जवा एवं त्यौथर मे बाढ से भारी तबाही, सरकार तत्काल ...: जवा एवं त्यौथर मे बाढ से भारी तबाही, सरकार तत्काल दे मुवावजा: रमाशेकर मिश्रा रीवा । पांच दिनो से लगातार हो रही बारिस और बकिया बराज के गेट ख...

Sunday, 8 October 2017

Yograj tiwari parasuram ashram

Yograj tiwari maa(6)

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प्रदेश कांग्रेस के नये प्रभारी महासचिव दीपक बावरिया भोपाल मे आज


रीवा ( कीर्ति प्रभा) प्रदेश कांग्रेस के नये प्रभारी महासचिव दीपक बावरिया के सामने सबसे बड़ी चुनौती यही होगी कि पूर्व प्रदेश प्रभारी मोहन प्रकाश की कार्यप्रणाली और व्यवहार से सिमट कर जो आम कांग्रेस कार्यकर्ता अपने घरों में बैठ गए हैं या जो दिखावे के लिए सक्रिय हैं उन्हें वे चुनावी मोड में ला पायेंगे क्या। अभी तक तो यही देखने में आया है कि आम कांग्रेसी कार्यकर्ता चुनावी मोड में नहीं आया है। विभिन्न अवसरों पर बड़े नेताओं ने एक मंच पर आकर एकता दिखाने का जो सतही प्रयास किया है वह मैदान में नजर नहीं आया है। कांग्रेस के सामने मुद्दों की कमी नहीं है लेकिन सवाल उन्हें भुनाने और लगातार माहौल बनाये रखने का है, जिसमें प्रदेश कांग्रेस सफल नहीं रही है। उनके सामने दूसरी बड़ी चुनौती यह होगी कि गुटबंदी में गहरे तक धंसी कांग्रेस को क्या वे उबार पायेंगे। कमलनाथ, ज्योतिरादित्य सिंधिया, सुरेश पचौरी, कांतिलाल भूरिया, अरुण यादव अजयसिंह को क्या बावरिया एक मंच पर लाने की औपचारिकता पूरी कराने के स्थान पर इनके हाथ दिल से मिले हैं इसका आभास सभी कांग्रेसजनों को दे पायेंगे। यह जरूरी है कि ताकि नीचे तक संदेश जाये कि अब हम एक हैं। इसलिए अब जमीनी स्तर के सभी कार्यकर्ताओं को भी एकजुट होकर विधानसभा चुनाव के लिए तैयार हो जाना चाहिए। जहां तक दिग्विजय सिंह का सवाल है वे फिलहाल 6 माह के लिए नर्मदा परिक्रमा यात्रा पर हैं और अपने आपको पार्टी की राजनीतिक गतिविधियों से अलग कर लिया है। ऐसे में देखने की बात यही होगी कि जब पहली बार नये प्रदेश प्रभारी महासचिव भोपाल आ रहे हैं उस दौरान कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया भोपाल में उपस्थित रहते हैं या नहीं। अभी तक प्रदेश के तीन बड़े नेताओं दिग्विजय सिंह, कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया के रिश्ते मोहन प्रकाश से सहज नहीं रहे हैं। प्रदेश कांग्रेस की जितनी बैठकें मोहन प्रकाश की उपस्थिति में हुर्ईं उनमें से अधिकांश में किसी न किसी कारण से कमलनाथ और सिंधिया ने दूरी बनाये रखी थी। यदि ये लोग नये प्रभारी की पहली बैठक में उपस्थित रहेंगे तो इसका आम कांग्रेसजनों में अच्छा संकेत जायेगा। वैसे औपचारिकतावश कांग्रेस के बड़े नेताओं ने बड़े प्रदर्शनों में एक मंच पर आकर एक-दूसरे का हाथ थामकर एकजुटता प्रदर्शित की है लेकिन उनके इस प्रदर्शन पर न तो आम जनता भरोसा कर पाई और न आम कांग्रेस कार्यकर्ता। विधानसभा चुनाव के लिए अब अधिक समय नहीं बचा है इसलिए बावरिया की पहली प्राथमिकता यही होना चाहिए कि प्रदेश कांग्रेस चुनावी मोड में आकर मैदान में संघर्ष करती नजर आये। कुछ आयोजनों में शिरकत कर यदि बड़े नेता वापस दिल्ली लौटते रहेंगे तो फिर इसका कोई स्थायी प्रभाव मतदाताओं पर नहीं पड़ेगा। बावरिया को स्वयं प्रदेश के लिए अधिक समय देना होगा और ऐसी कोई जुगत भिड़ाना होगी कि कांग्रेस के सभी बड़े नेता प्रदेश में सक्रिय रहें और चुनाव तक दिल्ली का मोह छोड़ दें। वैसे नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव निरन्तर सक्रिय हैं और वे विभिन्न आयोजन करते रहते हैं। लेकिन यदि बड़े नेता भी प्रदेश में घूमेंगे तो इसका कार्यकर्ताओं की सक्रियता पर सकारात्मक असर पड़ेगा। बावरिया के सामने सबसे बड़ी चुनौती यही होगी कि वे अलग-अलग दिशाओं में अपनी अंध महत्वाकांक्षाओं के घोड़े दौड़ाने वाले बड़े नेताओं को एक ही दिशा में कैसे ले जा पाते हैं। केवल नेताओं को ही नहीं बल्कि उनके समर्थकों को भी आपसी वर्चस्व की प्रतिस्पर्धा के मोहजाल से किस सीमा तक बाहर निकाल पाते हैं। अभी तक देखने में यह आया है कि बड़े नेताओं की गणेश परिक्रमा करने वाले यानी नेताओं के दरबार से जुड़े लेकिन जनता से कटे आधारहीन कार्यकर्ताओं को पद मिलते रहे हैं, जिसके कारण मैदानी पकड़ वाला कार्यकर्ता उपेक्षित होकर या तो घरों में बैठ गया या फिर पूरी तरह निराशा में डूब गया। मोहन प्रकाश की कार्यशैली ने अनेक प्रादेशिक नेताओं को प्रदेश कांग्रेस की चौखट से दूर कर दिया है, उन्हें मूलधारा में कैसे लाया जाए इस पर भी बावरिया को चिंतन करना होगा। कांग्रेस में इस बार भी चुनाव और समन्वय के नाम पर ब्लाक स्तर से लेकर प्रदेश स्तर तक मनोनयन ही होने जा रहा है। चूंकि चुनाव के लिए अब अधिक समय नहीं बचा है इसलिए यदि नेताओं से जुड़े नेताओं में ही पद बंट गए तो फिर जमीन से जुड़े कार्यकर्ताओं को उचित सम्मान और एडजस्ट करना बावरिया की जिम्मेदारी होगी। प्रदेश कांग्रेस की कमान कमलनाथ के हाथों में होगी या ज्योतिरादित्य सिंधिया के, इसको लेकर समय-समय पर अटकलबाजी चलती रहती है। इससे कार्यकर्ताओं में भी भ्रम के साथ ही गुटबाजी भी नये सिरे से पैदा होती है इसलिए यह जरूरी है कि बावरिया इस बात का पहले खुलासा करायें कि आगामी विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का मुकाबला करने के लिए कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया की क्या भूमिका होगी। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव यथावत अपने पद पर रहेंगे या नहीं। जब तक यह बातें स्पष्ट नहीं होंगी तब तक कार्यकर्ताओं में तो भ्रम बना ही रहेगा और इसके साथ ही अध्यक्ष के रूप में अरुण यादव का दबदबा भी पूरी तरह से नहीं बन पायेगा। चूंकि प्रदेश में लम्बे समय से भाजपा की सत्ता है इसलिए हर स्तर पर किसी न किसी रूप में कुछ कांग्रेस नेताओं के भाजपा नेताओं व कार्यकर्ताओं से व्यावसायिक और व्यक्तिगत रिश्ते जुड़े गए हैं। इनके चलते कांग्रेस को ज्यादा नुकसान हो रहा है। ऐसे फूल छाप कांग्रेसियों की पहचान करना बावरिया के लिए जरूरी होगा। वैसे भाजपा के लिए पंजा छाप भाजपाइयों की तलाश करने की कतई आवश्यकता नहीं है। भाजपा तो हर कांग्रेसी के हाथों में एन-केन-प्रकारेण कमल थमा हुआ देखना चाहती है। उसकी प्राथमिकता देश को कांग्रेसमुक्त करना है, भले ही इसमें भाजपा कांग्रेसयुक्त हो जाए। जो जीता वही सिकन्दर प्रदेश में सतना जिले के चित्रकूट और अशोकनगर के मुंगावली में विधानसभा उपचुनाव की घोषणा किसी भी समय हो सकती है क्योंकि चुनाव आयोग ने तैयारियां प्रारंभ कर दी हैं। दोनों ही स्थानों पर उपचुनाव कांग्रेस विधायकों के निधन के कारण हो रहे हैं इसलिए इन चुनावों में जीतना समूची कांग्रेस पार्टी के लिए नाक का सवाल है। उससे ये सीटें भाजपा छीन लेती है तो इसका मनोवैज्ञानिक असर कांग्रेसियों में हताशा फैलाने के लिए वह करेगी। चूंकि प्रदेश प्रभारी बदलने के बाद पहले राजनीतिक शक्ति परीक्षण का सामना कांग्रेस करने जा रही है इसलिए इन उपचुनावों में जीत-हार का बावरिया के मनोबल पर कुछ न कुछ असर अवश्य पड़ेगा। चित्रकूट में नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है और यहां कांग्रेस के सामने सबसे बड़ी चुनौती पूर्व में कांग्रेस विधायक रहे और वर्तमान में शिवराज सरकार के राज्यमंत्री संजय पाठक से मिलने वाली है। चूंकि कांग्रेसियों से उनके तार गहरे तक जुड़े हुए हैं इसलिए देखने की बात यही होगी कि कांग्रेस अपनी कमजोर कडिय़ों को उनकी सेंधमारी से कैसे बचा पाती है। जहां तक मुंगावली का सवाल है यह सीट क्षेत्रीय कांग्रेस सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री सिंधिया के लिए प्रतिष्ठा की बन गई है। उन्हें हर हाल में यहां जीतना ही होगा ताकि भाजपा उन्हें आगामी लोकसभा चुनाव में पराजित करने का जो दावा कर रही है उसकी हकीकत सामने आ जाए। चूंकि सिंधिया परिवार के विश्वस्त महेंद्र सिंह कालूखेड़ा के निधन से यह सीट खाली हुई है इसलिए इसे बचाना सिंधिया की प्रतिष्ठा से जोड़कर देखा जा रहा है। सिंधिया स्वयं उसी पैटर्न पर लडऩे जा रहे हैं जिस पैटर्न पर वे अपना चुनाव लड़ते हैं। इसके लिए उन्होंने अभी से मुंगावली क्षेत्र को 29 सेक्टरों में बांट दिया है और वहां एक-एक नेता को सुनिश्चित जिम्मेदारी इस निर्देश के साथ दी गई है कि अब वह मतदान तक उन जगहों पर ही ज्यादा ध्यान दें जिनकी उन्हें जिम्मेदारी सौंपी गई है। लगभग 250 मतदान केंद्रों पर प्रति मतदान केंद्र 10 कार्यकर्ताओं यानी कुल मिलाकर ढाई हजार कार्यकर्ताओं की तैनाती कर दी गई है। इन सभी से सिंधिया स्वयं सीधे संपर्क में रहेंगे।

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सुरा प्रेमियों को मिल रही भरपूर शराब


सुरा प्रेमियों को मिल रही भरपूर शराब जिस प्रदेश में आज किसानों के उग्र आंदोलन के चलते लोगों को अपने बच्चों को पिलाने के लिये दूध उपलब्ध नहीं हो पा रहा हो लेकिन इसी शिवराज सरकार की किसानों के हितैषी योजनाओं की नहीं बल्कि एक सबसे बड़ी उपलब्धि शराब को घर पहुंच सेवा बनाने का लाभ इन दिनों वह सुरा प्रेमी उठा रहे हैं और उन्हें इस माहौल में भी जहां बच्चों को दूध नहीं मिल रहा है लेकिन उनके जाम लड़ाने के लिये शराब घर पहुंच सेवा के रूप में उपलब्ध है। किसानों के उग्र आंदोलन का लाभ इन दिनों मिलावटखोर उठाने में लगे हुए हैं और दूध में नहला धुलाकर बेचने में लगे हुए हैं, लेकिन तो वहां दूसरी और जिस दुग्ध संघ मामले में मुख्यमंत्री और उससे जुड़े बंधकों का यह दावा हुआ कराता था कि वह इस प्रदेश में दूध की गंगा बहाने के दावे की पोल भी खुलती नजर आ गई। आज दुग्ध संघ में व्याप्त भ्रष्टाचार और अव्यवस्था के चलते राजधानी के लोगों को दूध तक उपलब्ध नहीं हो पा रहा है और इसका फायदा मिलावटखोर उठाने में लगे हुए हैं लेकिन इसके बाद भी प्रशासन में बैठी नौकरशाही इन मिलावट खोरों के खिलाफ कोई कार्यवाही करते नजर नहीं आ रहे हैं। इस आंदोलन से पैदा हुई स्थिति का लाभ उठाने दूध को लेकर कई लोगों ने कमाई शुरू कर दी हैं वह बड़े स्टोर से अमूल या अन्य ब्राण्ड का दूध लेते हैं और उसमें बड़े पैमाने पर पानी मिलाकर फिर यह दूध खुलेआम बेच रहे हैं। मजे की बात यह है कि दुग्ध संघ की इस कमजोरी का फायदा उठाते हुए अब कई लोग इस धंधे में पैसा कमाने में लग गए हैं। स्थिति यह है कि इस प्रदेश शिवराज सरकार की नौकरशाही के दबदलबे के चलते दूध तो लोगों को अपने बच्चों को पिलाने के लिये उपलब्ध नहीं हो रहा है लेकिन भाजपा की सरकार की शराब को घर पहुंच सेवा बनाने की रणनीति के चलते आज शराब हर जगह उपलब्ध है क्योंकि इस कारोबार में भाजपा के नेता सक्रिय हैं ओर उन्हें के संरक्षण में चाहे विदिशा हो या अलीराजपुर, या धार जैसे कई नगरों में जहां भाजपा नेताओं के बीयर बार हैं जहां शराब देर रात तक उपलब्ध है, लेकिन प्रशासन की लापरवाही के चलते लोगों को अपने बच्चों को पिलाने के लिऐ दुध उपलब्ध नहीं हो रहा है।

मध्यप्रदेश के द्वारा किये गये कामों का ढिंढोरा


उत्तरप्रदेश में सम्पन्न हुए विधानसभा चुनाव के दौरान जिस बुंदेलखण्ड पैकेज के कामों को लेकर देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी मध्यप्रदेश के द्वारा किये गये कामों का ढिंढोरा पीटते हुए उत्तरप्रदेश की सरकार पर यूपीए सरकार के दौरान मिले बुंदेलखण्ड पैकेज में तत्कालीन समाजवादी पार्टी की सरकार के द्वारा फर्जीवाड़ा करने का आरोप लगाने में नहीं चूके लेकिन जब वह मध्यप्रदेश सरकार के कामों की सफलता को लेकर ढिंढोरा पीट रहे थे तो शायद उन्हें यह नहीं मालूम नहीं था कि जिस मध्यप्रदेश में उनकी ही अपनी भारतीय जनता पार्टी की सरकार है हालांकि प्रदेश की भाजपा सरकार राज्य की जनता को भय, भूख ओर भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन देने के वायदे के साथ सत्ता पर काबिज तो जरूर हुई लेकिन इन 14 वर्षों के शासनकाल में और खासकर मुख्यमंत्री शिवराज ङ्क्षसह चौहान के शासनकाल के दौरान इस प्रदेश में चलाई गई हर सरकारी योजनाओं में प्रदेश में सक्रिय मंत्रियों, अधिकारियों, सत्ता के दलालों और ठेकेदारों के रैकेट के द्वारा जो हेराफेरी और गड़बड़झाला किया गया शायद उसकी जानकारी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को नहीं थी तभी तो वह मध्यप्रदेश के हिस्से के बुंदेलखण्ड पैकेज के सफलतम क्रियान्वयन को लेकर शिवराज सरकार की तारीफ कर रहे थे तो वहीं उत्तरप्रदेश की तत्कालीन समाजवादी पार्टी पर भ्रष्टाचार का आरोप लगा रहे थे लेकिन इसकी जमीनी हकीकत यह है कि मध्यप्रदेश के वर्षोँ से उपेक्षित उस बुंदेलखण्ड क्षेत्र के साथ हमेशा भेदभाव की नीति अपनाई गई और इस क्षेत्र के लिये बनी तमाम योजनाओं में जमकर फर्जीवाड़ा किया गया तभी तो इस क्षेत्र की शिवराज सरकार के उस सबका साथ, सबका विकास के नारे के साथ क्षेत्र का तो विकास नहीं हुआ हाँ यह जरूर है कि इस नारे को सार्थक करते हुए इस क्षेत्र के नेताओं और अधिकारियों ने जमकर इस बुंदेलखण्ड पैकेज में गड़बड़झाला किया गया। हालांकि इस गड़बड़झाले की सरकारी स्तर पर जांच कराई गई और उसमें भ्रष्ट अधिकारियों को क्ल्ीन चिट देने का काम भी इस शासन की कार्यशैली के अनुसार दे दी गई लेकिन जब यह बुंदेलखण्ड पैकेज में जमकर हुए भ्रष्टाचार का मामले को लेकर न्यायालय में दस्तक दी गई तब जबलपुर हाईकोर्ट के निर्देश पर मुख्य तकनीकी परीक्षक (सीटीई) ने जांच की और जांच के बाद अपनी रिपोर्ट राज्य शासन को सौंपी इस रिपेार्ट में गड़बडिय़ों का जो खुलासा किया गया वह चौंकाने वाला है ही तो वहीं वोट की खातिर भाजपा को छोड़ दूसरी पार्टियों की सरकारों पर बिना जानकारी लिये आरोप लगाने वाले प्रधानमंत्री की भी विश्वसनीयता पर प्रश्न खड़े होते हैं? जिस बुंदेलखण्ड पैकेज को लेकर प्रधानमंत्री और भाजपा के नेता उत्तरप्रदेश चुनाव में मध्यप्रदेश के कामों की सराहना करते हुए नजर आ रहे थे उसी मध्यप्रदेश में बुंदेलखण्ड पैकेज के तहत जिस तरह का गोलमाल और घोटाला हुआ वह अपने आपमें बुंदेलखण्ड में अभी तक हुए भ्रष्टाचार के मामले मं एक इतिहास है। लेकिन मजे की बात यह है कि भ्रष्टाचारियां को बक्शा नहीं जाएगा का जुमला इस प्रदेश की जनता को सुनाने वाले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के कार्यकाल में बुंदेलखण्ड पैकेज में गड़बड़झाला और फर्जीवाड़ा करने वाले अधिकारियों के साथ कोई कार्यवाही नहीं की गई मजे की बात तो यह है कि इनमें से कई अधिकारी सेवानिवृत्त हो चुके हैं और कई होने की कगार पर हैं, लेकिन फिर भी बुंदेलखण्ड के विकास के नाम पर भाजपा सरकार नहीं बल्कि यूपीए सरकार के द्वारा दिये गये इस बुंदेलखण्ड पैकेज में हुए फर्जीवाड़े की हाईकोर्ट के निर्देश पर मुख्य तकनीकी परीक्षक (सीटीई) ने जो जांच रिेपोर्ट शासन को सौंपी है वह रिपोर्ट अन्य भ्रष्टाचार की रिपोर्टों की तरह आज भी धूल खा रही है। यूपीए सरकार के कार्यकाल के दौरान बुंदेलखण्ड पैकेज के तहत पशुपालन विभाग के हिस्से में आई 81 करोड़ की राशि में भी जमकर बंदरबांट हुआ। विभाग ने लोगों का जीवन स्तर सुधारने के लिए साढ़े चार करोड़ से अच्छी नसल की बकरियां और भैंस वंश के नस्ल सुधार के लिए मुर्रा पाड़ा बांटने की योजना बनर्इा थी। अफसारों ने इन्हें कागजों में ही बांटकर पूरी योजना पर पलीता लगा दिया। हाईकोर्ट, जबलपुर के निर्देश पर मुख्य तकनीकी परीक्षक (सीटीई) ने जांच के बाद अपनी जो रिपेार्ट राज्य शासन को सौंपी हैं, उसमें गड़बडिय़ों का खुलासा किया गया है। रिपोर्ट के अनुसार, हितग्राहियों की जो बकरियंा और मुर्रा पाड़े बांटे गए, वह कमजोर थे। बकरियां तो दस दिन बाद ही मरने लगीं। इनकी मृत्यु पर हितग्राहियों को बीमा भी नहीं मिला। वजह संबंधित हितग्राही का नाम पशुपालन विभाग की सूची में शामिल ही नहीं था। इस बुंदेलखण्ड पैकेज में जिम्मेदार अधिकारियों ने जिस तरह से घोटाला किया उसके चलते बुंदेलखण्ड के पुराने भ्रष्टाचार के रिकार्ड को भी तोड़ दिया गया, हालांकि बुंदेलखण्ड में सरकारी योजनाओं में भ्रष्टाचार की यदि बात करें तो इसी बुंदेलखण्ड के टीकमगढ़ जिले में नहर के चोरी हो जाने की घटना भी एक भ्रष्टाचार का इतिहास है, इससे भी कुछ कम शिवराज सरकार में बुंदेलखण्ड के इस पैकेज में भी फर्जीवाड़े और भ्रष्टाचार के नाम पर शिवराज सरकार की तरह कई रिकार्ड स्थापित किये हैं, भ्रष्टाचार के आंकड़ों पर यदि गौर करें तो बुंदेलखण्ड पैकेज के तहत बकरियों और मुर्रा पाड़े बढ़ाने पर जिलेवार जो राशि खर्च की गई उसके तहत टीकमगढ़ में 200 इकाई राशि 6499600, सागर में 200 इकाई राशि 6499600, छतरपुर में 200 इकाई राशि 6499600, पन्ना में 180 इकाई राशि 8846640, दतिया में 166 इकाई राशि 5334667 तथा दमोह में 195 इकाई राशि 6337116 की राशि खर्च की गई। यही नहीं इस राशि में से कुछ राशि तो भूसे के नाम पर भी खर्च कर डाली। जांच रिपोर्ट में बकरियों की मृत्यु दर सबसे अधिक छतरपुर एवं टीकमगढ़ जिले में थी, मुर्रा पाड़े की मृत्यु दर का प्रतिशत पांच से दस प्रतिशत रहा, इससे यह पता चलता है कि हितग्राहियों को स्वस्थ्य मुर्रा व बकरियां प्रदान नहीं की गईं। बुंदेलखण्ड पैकेजे के दौरान सरकार द्वारा हितग्राहियों को दिये गये बकरियों और पाड़े सहित किस जिले में कितने पशु मरे उसके अनुसार छतरपुर जिले में 15.44 प्रतिशत बकरियां तो 5.88 मुर्रा पाड़ा, इसी प्रकार टीकमगढ़ में 22.00 प्रतिशत बकरिया मरी तो वहीं 5.88 प्रतिशत मुर्रा पाड़ा मरने का प्रतिशत रहा। लगभग यही स्थिति सागर की भी रही यहां 6.00 प्रतिशत बकरियां मरी तो मुर्रा पाड़ों की मरने की संख्या 4.00 रही, पन्ना में भी मृत बकरियों का प्रतिशत 5.00 रहा तो मुर्रा पाड़ा का 10.00 रहा, ठीक यही स्थिति दतिया जिले की रही जहां मृत बकरियों की संख्या 4.00 प्रतिशत रही तो मुर्रा पाड़ों की मृत्यु दर 09.00 रही। सटीई द्वारा शासन को सौंपी गई रिपोर्ट के अनुसार योजना के अनुसार राशि सीधे हितग्राही के खाते में जमा की जाना थी लेकिन छतरपुर जिले में 83 लाख 71 हजार 665 रुपये अनुदन की राशि उप संचालक पशु चिकित्सा सेवायें छतरपुर द्वारा पशु चिकित्सा सहायक शल्यज्ञों के निजी खाते में जमा की गई इसी प्रकार से सागर जिले में बकरियों के लिये जो राशि 54.5 लाख रुपये एवं मुर्रा पाड़े की राशि 24.45 लाख रुपये विकासखण्ड पशु चिकित्सा विस्तार अधिकारियों के निजी नाम से खोले गये खाते में जमा की गई। इस बुंदेलखण्ड पैकेज में जो गड़बड़ी का खेल चला उसके तहत बीमा अंतर की राशि हितग्राहियों को वापस दिलाने के लिये किसी भी उपसंचालक द्वारा कार्यवाही नहीं की गई, मजे की बात यह है कि बुंदेलखण्ड पैकेज में हुए इस फर्जीवाड़े की सीटीई के द्वारा दी गई रिपोर्ट आज भी धूल खा रही है।

15 हजार के कर्ज मे डूबा हर इन्सान

15 हजार के कर्ज मे डूबा हर इन्सान मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के सत्ता पर काबिज होने के साथ ही जो उनकी धर्मपत्नी श्रीमती साधना सिंह द्वारा अपनी पहचान छुपाकर डम्पर खरीदने का जो खेल खेलकर जो संदेश इस प्रदेश की जनता को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के पूत के पांव पालने में दिखाने का जो काम किया था। उनके इस संदेश बाद से भ्रष्टाचार की जो गंगोत्री जो इस प्रदेश में ऊपर से लेकर नीचे तक बही उसके चलते फर्जी आंकड़ों के सहारे विकास तो खूब हुआ और इस विकास के लिये तत्कालीन यूपीए सरकार और वर्तमान मोदी सरकार के शासनकाल के दौरान करोड़ों रुपये प्रदेश की येाजनाओं के लिये राशि आई लेकिन उसके बाद भी यह प्रदेश डेढ़ लाख करोड़ रुपये का कर्जदार बन गया और स्थिति यह है कि प्रदेश का हर नागरिक आज 15 हजार रुपये व्यक्तिगत कर्जदार बन गया। लेकिन इसके बाजवूद भी प्रदेश की सत्ता के मुखिया शिवराज सिंह चौहान इस प्रदेश में सबका विकास सबके साथ करने का ढिंढोरा पीटते रहे। शिवराज सरकार में विकास कितना हुआ इसकी पोल नीति आयोग की हाल ही में आई रिपोर्ट से इस बात का खुलासा हो गया और उसमें यह साफ हो गया कि कृषि के अलावा किसी भी सेक्टर में काम धरातल पर नहीं बल्कि कागजों में हुआ है, लेकिन जिन किसानों के कृषि सेक्टर में काम होने की बात नीति आयोग की रिपोर्ट में की गई है वह भी कहां हुए, यदि वह काम हुए होते तो शायद किसानों में इतना आक्रोश नहीं होता कुल मिलाकर राज्य में विकास के नाम पर भ्रष्टाचार की गंगोत्री इस तरह से बही कि उससे जनता को तो कोई लाभ नहीं हुआ बल्कि भाजपा के नेताओं, जनप्रतिनिधियों और मुख्यमंत्री के चहेते अधिकारियों की जरूर स्थिति सुधरी है, शायद यही वजह है कि आज भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष द्वारा दिये गये अबकी बार 200 पार के टारगेट को पूरा करने में स्वयं शिवराज को मेहनत मशक्कत करनी पड़ रही है यदि सबकुछ ठीकठाक होता तो जितनी हाय तौबा इन दिनों सत्ता और संगठन के सुधार को लेकर मची हुई है, उतनी चिंता शायद मुख्यमंत्री के चहेते अधिकारियों को लेकर किसी को दिखाई नहीं दे रही है, इन्हीं भ्रष्ट अधिकारियों के चलते राज्य की राजनीतिक स्थिति गड़बड़ाई है कहने को जरूर 13 वर्षों से मुख्यमंत्री पद पर शिवराज सिंह अब सरकारी विज्ञापनों और सरकारी आयोजनों में अपने मनमोहक छवि वाले बैनर पोस्टरों और विज्ञापनों को देखकर अपने लोकप्रिय होने का दंभ पाले रहे, लेकिन स्थिति यह है कि उनकी लोकप्रियता आज जमीनी स्तर पर दिखाई नहीं दे रही है और संघ के द्वार कराये गये इस सर्वे से इस बात का खुलासा हुआ कि यदि शिवराज सिंह के नेतृत्व में चुनाव लड़ा जाएगा तो भारतीय जनता पार्टी को चौथी बार सरकार बनाने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है, क्योंकि एक तरफ व्यापं के कारण प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान की छवि को नुकसान हुआ और अब किसान आंदोलन से निपटने में नाकामयाब हुए शिवराज सिंह की लोकप्रियता का ग्राफ तेजी से नीचे गिर रहा है, इसी बात को लेकर संघ चिंता में है और वह यह मान रहा है कि अगर कांग्रेस के बड़े नेता प्रदेश में एकजुट होकर चुनावी समर में उतरते हैं तो लगातार चौथी बार भाजपा की जीत मुश्किल होगी ऐसे में संघ में दो पहलुओं पर विचार करना शुरू कर दिया है कि या तो भाजपा का चेहरा बदल दिया जाए या फिर बिना किसी चेहरे के चुनाव लड़ा जाये? हाल ही में प्रदेश के राजनैतिक गलियारों में इन दिनों एक सर्वे को लेकर जोर-शोर से चर्चा हो रही है। इस सर्वे में मप्र में सत्ता पर काबिज भाजपा और सीएम शिवराज सिंह की नींद उड़ा दी है। ये कथित सर्वे किसी एजेंसी या समाचार पत्र या टीवी चैनल का नहीं है। बल्कि इस सर्वे के बारे में कहा जा रहा है कि ये सर्वे राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने कराया है। इस आंतरिक सर्वे ने जहां चौथी बार मप्र की सत्ता पर काबिज होने का सपना देख रही भाजपा को परेशानी में डाल दिया है, तो संगठन को सूझ नहीं रहा है कि आखिर कैसे वो हालात अपने पक्ष में लाएं। इस सर्वे के बारे में कहा जा रहा है कि संघ के इस आंतरिक सर्वे में कहा गया है कि अगर आज की स्थिति में चु नाव करा लिए जाएं तो भाजपा की सरकार गिर सकती है। आज की स्थिति में चु नाव कराए जाएं तो सरकार बनती नहीं दिख रही - दरअसल, जिस सर्वे की चर्चा इन दिनों राजधानी के सियासी हलकों में सुनने को मिल रही है। बताया जा रहा है कि संघ इस सर्वे के बारे में कहा रजा है कि संघ ने मौज्ूदा हालात के आधार पर किए सर्वे में पाया कि 2013 के तमाम के तमाम प्रत्याशियों को अगर आज की स्थिति में चुन ाव कराया जाए तो भाजपा की सरकार बनती नहीं दिखाई नहीं दे रही है। सर्वे में वर्तमान भाजपा विधायक हारते हुए दिखाई दे रहे हैं। संघ के सर्वे के हिसाब से भाजपा को अगले चुनाव में 100 से कम सीटें हासिल होती दिखाई दे रही हैं। जबकि मप्र में सरकार बनाने के लिए 230 में से 116 सीटों की जरूरत होती है। खास बात ये है कि जिन विधायकोकं की हार की रिपोर्ट सर्वे में आ रही है, उसमें शिवराज के कद्दावर मंत्री और वरिष्ठ विधायक शामिल हैं। फौरी तौर पर भाजपा ने इन हालातों से पार पाने के लिए जहां संगठन में कार्यकर्ताओं को महत्व देने की रणनीति बनाई है। तो दूसरी तरफ सरकारी नुकान की चिंता किए बिना सरकारी खजाना चुनाव जीतने के लिए लुटाने की रणनीति तैयार की जा रही है। संगठन ने सरकारी मशीनरी की मदद से जमानत को भाजपा के पक्ष में लाने पर भी रणनीति तैयार करना शुरू कर दिया है। वहीं करीब 20 हजार कार्यकर्ताओं को मोटरसाइकिल और पचास हजार रुपये भी देने की तैयारी की जा रही है। इस कतिपय सर्वे से मप्र भाजपा के होश उड़े हैं क्योंकि पिछले दिनों तीन दिवसीय मप्र प्रयास पर आए अमित शाह अबकी बार 200 पार का लक्ष्य दिया है। लेकिन इस सर्वे में तो भाजपा 100 के पार होती नहीं दिखाई दे रही है। इस कथित सर्वे के साथ राजनैतिक हलकों में चर्चा है कि संघ को हिदायत के बाद सीएम शिवराज सिंह लगातार मप्र भाजपा संगठन के साथ गुचपुच बैठकें कर रहे हैं और हालात से निपटने की रणनीति पर विचार कर रहे हैं। सीएम शिवराज सिंह सहित प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार चौहान, प्रदेश महामंत्री सुहास भगत और शिवराज सिंह के विश्वास पात्र नेता रणनीतिक तैयारियों में जुट गए हैं। क्योंकि इन सभी नेताओं को अब शिवराज सिंह के शासनकाल के दौरान जिस तरह के भ्रष्टाचार की गंगोत्री अके चलते इस प्रदेश में विकास के नाम पर जो खेला गया उसे समेटने में काफी समय लगेगा। देखना अब यह है कि इन सभी नेताओं की रणनीति क्या शिवराज सिंह के नेतृत्व में चौथी बार सत्ता हासिल कर पाती है या नहीं हालांकि संघ से लेकर स्वयं शिवराज सिंह चौहान इस बात से भलीभांति परिचित हैं कि अब उनके चेहरे के नाम पर चुनावी समर में नहीं उतरा जा सकता है, तभी तो शिवराज सिंह कुछ न कुछ ऐसा करने में लगे हुए हैं। कुल मिलाकर प्रदेश में 1998 की तरह दिग्विजय सिंह के शासनकाल की परिस्थितियां शिवराज के सामने निर्मित होती नजर आ रही हैं?

15 दिन में महिला को बना दिया मां

15 दिन में महिला को बना दिया मां

 मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के शासनकाल के दौरान सरकारी योजनाओं में किस तरह से फर्जीवाड़ा चल रहा है इस फर्जीवाड़ा के चलते राज्य के शहडोल जिले में संस्थागत प्रसव को बढ़ावा देने के लिए सरकार द्वारा कई योजनाएं संचालित की जा रही हैं लेकिन इनकी जमीनी हकीकत कुछ और ही है। इन्हीं योजनाओं में से एक जननी सुरक्षा योजना है, जिसकी बंदरबांट किया गया। जिला चिकित्सालय में पैसों की लालच में अधिकारियों ने सारी मर्यादायें लांघ दी हैं। बीती 21 जुलाई को ग्राम पंचायत बकड़ी की एक महिला का गर्भपात कराया जाात है और ठीक उसके 15 दिन बाद वही महिला प्रसव के लिए जिला चिकित्सालय शहडोल में भर्ती होती है और यहां एक स्वस्थ्य बच्ची को जन्म देती है। दोनों ही मामले स्वास्थ्य विभाग के दस्तावेजों में दर्ज हैं, लेकिन चल रही इस मनमानी और घोटाले से विभागीय अधिकारियों को कोई लेना-देना नहीं है। ग्राम पंचायत बकहो में रहने वाली 24 वर्षीय महिला का बुढ़ार सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र अंतर्गत अमलाई स्थित उप स्वास्थ्य केन्द्र में गर्भवती महिला के रूप में नाम दर्ज किया गया। स्वास्थ्य केन्द्र के रजिस्टर में उक्त महिला का स्वयं की इच्छा पर बीती 21 जुलाई को गर्भपात होना भी दर्शाया गया। ठीक 15 दिन बाद वही महिला जिला चिकित्सालय शहडोल के डिलेवरी वार्ड में भर्ती होती हुई। जिला चिकित्सालय के रिकार्डों के अनुसार ओपीडी क्रमांक 102564/17 व ओपीडी क्रमांक 121261/17 में उक्त महिला का नाम दर्ज है। जहां डिलीवरी वार्ड में ही दाखिल स्वस्थ्य बच्ची को जन्म देती है और दस अगस्त की दोपहर 12 बजकर चार मिनट पर उसे डिस्चार्ज किया जाता है। शासन द्वारा संस्थागत प्रसव का लक्ष्य बढ़ाने के दबाव के बाद जिला चिकित्सालय सहित अन्य सामुदायिक व उप स्वास्थ्य केन्द्रों में इस तरह के मामले भारी संख्या में हो रहे हैं। जहां मनमाने ढंग से नाम दर्ज कर योजना के अंतर्गत मिलने वाली राशि और अन्य अनुदान व सामग्रियां हजम की जा रही हैं। यही नहीं, मातहतों द्वारा किये जा रहे इस घोटाले को जिला चिकित्सालय के आलाधिकारी भी लक्ष्य पाने के फेर में अपना संरक्षण दिये हुए हैं। जननी सुरक्षा योजना का लाभ लेने वाली महिलाओं की सूची की यदि पड़ताल की जाये तो करोड़ों का घोटाला सामने आ सकता है।

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