Sunday, 8 October 2017

प्रदेश कांग्रेस के नये प्रभारी महासचिव दीपक बावरिया भोपाल मे आज


रीवा ( कीर्ति प्रभा) प्रदेश कांग्रेस के नये प्रभारी महासचिव दीपक बावरिया के सामने सबसे बड़ी चुनौती यही होगी कि पूर्व प्रदेश प्रभारी मोहन प्रकाश की कार्यप्रणाली और व्यवहार से सिमट कर जो आम कांग्रेस कार्यकर्ता अपने घरों में बैठ गए हैं या जो दिखावे के लिए सक्रिय हैं उन्हें वे चुनावी मोड में ला पायेंगे क्या। अभी तक तो यही देखने में आया है कि आम कांग्रेसी कार्यकर्ता चुनावी मोड में नहीं आया है। विभिन्न अवसरों पर बड़े नेताओं ने एक मंच पर आकर एकता दिखाने का जो सतही प्रयास किया है वह मैदान में नजर नहीं आया है। कांग्रेस के सामने मुद्दों की कमी नहीं है लेकिन सवाल उन्हें भुनाने और लगातार माहौल बनाये रखने का है, जिसमें प्रदेश कांग्रेस सफल नहीं रही है। उनके सामने दूसरी बड़ी चुनौती यह होगी कि गुटबंदी में गहरे तक धंसी कांग्रेस को क्या वे उबार पायेंगे। कमलनाथ, ज्योतिरादित्य सिंधिया, सुरेश पचौरी, कांतिलाल भूरिया, अरुण यादव अजयसिंह को क्या बावरिया एक मंच पर लाने की औपचारिकता पूरी कराने के स्थान पर इनके हाथ दिल से मिले हैं इसका आभास सभी कांग्रेसजनों को दे पायेंगे। यह जरूरी है कि ताकि नीचे तक संदेश जाये कि अब हम एक हैं। इसलिए अब जमीनी स्तर के सभी कार्यकर्ताओं को भी एकजुट होकर विधानसभा चुनाव के लिए तैयार हो जाना चाहिए। जहां तक दिग्विजय सिंह का सवाल है वे फिलहाल 6 माह के लिए नर्मदा परिक्रमा यात्रा पर हैं और अपने आपको पार्टी की राजनीतिक गतिविधियों से अलग कर लिया है। ऐसे में देखने की बात यही होगी कि जब पहली बार नये प्रदेश प्रभारी महासचिव भोपाल आ रहे हैं उस दौरान कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया भोपाल में उपस्थित रहते हैं या नहीं। अभी तक प्रदेश के तीन बड़े नेताओं दिग्विजय सिंह, कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया के रिश्ते मोहन प्रकाश से सहज नहीं रहे हैं। प्रदेश कांग्रेस की जितनी बैठकें मोहन प्रकाश की उपस्थिति में हुर्ईं उनमें से अधिकांश में किसी न किसी कारण से कमलनाथ और सिंधिया ने दूरी बनाये रखी थी। यदि ये लोग नये प्रभारी की पहली बैठक में उपस्थित रहेंगे तो इसका आम कांग्रेसजनों में अच्छा संकेत जायेगा। वैसे औपचारिकतावश कांग्रेस के बड़े नेताओं ने बड़े प्रदर्शनों में एक मंच पर आकर एक-दूसरे का हाथ थामकर एकजुटता प्रदर्शित की है लेकिन उनके इस प्रदर्शन पर न तो आम जनता भरोसा कर पाई और न आम कांग्रेस कार्यकर्ता। विधानसभा चुनाव के लिए अब अधिक समय नहीं बचा है इसलिए बावरिया की पहली प्राथमिकता यही होना चाहिए कि प्रदेश कांग्रेस चुनावी मोड में आकर मैदान में संघर्ष करती नजर आये। कुछ आयोजनों में शिरकत कर यदि बड़े नेता वापस दिल्ली लौटते रहेंगे तो फिर इसका कोई स्थायी प्रभाव मतदाताओं पर नहीं पड़ेगा। बावरिया को स्वयं प्रदेश के लिए अधिक समय देना होगा और ऐसी कोई जुगत भिड़ाना होगी कि कांग्रेस के सभी बड़े नेता प्रदेश में सक्रिय रहें और चुनाव तक दिल्ली का मोह छोड़ दें। वैसे नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव निरन्तर सक्रिय हैं और वे विभिन्न आयोजन करते रहते हैं। लेकिन यदि बड़े नेता भी प्रदेश में घूमेंगे तो इसका कार्यकर्ताओं की सक्रियता पर सकारात्मक असर पड़ेगा। बावरिया के सामने सबसे बड़ी चुनौती यही होगी कि वे अलग-अलग दिशाओं में अपनी अंध महत्वाकांक्षाओं के घोड़े दौड़ाने वाले बड़े नेताओं को एक ही दिशा में कैसे ले जा पाते हैं। केवल नेताओं को ही नहीं बल्कि उनके समर्थकों को भी आपसी वर्चस्व की प्रतिस्पर्धा के मोहजाल से किस सीमा तक बाहर निकाल पाते हैं। अभी तक देखने में यह आया है कि बड़े नेताओं की गणेश परिक्रमा करने वाले यानी नेताओं के दरबार से जुड़े लेकिन जनता से कटे आधारहीन कार्यकर्ताओं को पद मिलते रहे हैं, जिसके कारण मैदानी पकड़ वाला कार्यकर्ता उपेक्षित होकर या तो घरों में बैठ गया या फिर पूरी तरह निराशा में डूब गया। मोहन प्रकाश की कार्यशैली ने अनेक प्रादेशिक नेताओं को प्रदेश कांग्रेस की चौखट से दूर कर दिया है, उन्हें मूलधारा में कैसे लाया जाए इस पर भी बावरिया को चिंतन करना होगा। कांग्रेस में इस बार भी चुनाव और समन्वय के नाम पर ब्लाक स्तर से लेकर प्रदेश स्तर तक मनोनयन ही होने जा रहा है। चूंकि चुनाव के लिए अब अधिक समय नहीं बचा है इसलिए यदि नेताओं से जुड़े नेताओं में ही पद बंट गए तो फिर जमीन से जुड़े कार्यकर्ताओं को उचित सम्मान और एडजस्ट करना बावरिया की जिम्मेदारी होगी। प्रदेश कांग्रेस की कमान कमलनाथ के हाथों में होगी या ज्योतिरादित्य सिंधिया के, इसको लेकर समय-समय पर अटकलबाजी चलती रहती है। इससे कार्यकर्ताओं में भी भ्रम के साथ ही गुटबाजी भी नये सिरे से पैदा होती है इसलिए यह जरूरी है कि बावरिया इस बात का पहले खुलासा करायें कि आगामी विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का मुकाबला करने के लिए कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया की क्या भूमिका होगी। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव यथावत अपने पद पर रहेंगे या नहीं। जब तक यह बातें स्पष्ट नहीं होंगी तब तक कार्यकर्ताओं में तो भ्रम बना ही रहेगा और इसके साथ ही अध्यक्ष के रूप में अरुण यादव का दबदबा भी पूरी तरह से नहीं बन पायेगा। चूंकि प्रदेश में लम्बे समय से भाजपा की सत्ता है इसलिए हर स्तर पर किसी न किसी रूप में कुछ कांग्रेस नेताओं के भाजपा नेताओं व कार्यकर्ताओं से व्यावसायिक और व्यक्तिगत रिश्ते जुड़े गए हैं। इनके चलते कांग्रेस को ज्यादा नुकसान हो रहा है। ऐसे फूल छाप कांग्रेसियों की पहचान करना बावरिया के लिए जरूरी होगा। वैसे भाजपा के लिए पंजा छाप भाजपाइयों की तलाश करने की कतई आवश्यकता नहीं है। भाजपा तो हर कांग्रेसी के हाथों में एन-केन-प्रकारेण कमल थमा हुआ देखना चाहती है। उसकी प्राथमिकता देश को कांग्रेसमुक्त करना है, भले ही इसमें भाजपा कांग्रेसयुक्त हो जाए। जो जीता वही सिकन्दर प्रदेश में सतना जिले के चित्रकूट और अशोकनगर के मुंगावली में विधानसभा उपचुनाव की घोषणा किसी भी समय हो सकती है क्योंकि चुनाव आयोग ने तैयारियां प्रारंभ कर दी हैं। दोनों ही स्थानों पर उपचुनाव कांग्रेस विधायकों के निधन के कारण हो रहे हैं इसलिए इन चुनावों में जीतना समूची कांग्रेस पार्टी के लिए नाक का सवाल है। उससे ये सीटें भाजपा छीन लेती है तो इसका मनोवैज्ञानिक असर कांग्रेसियों में हताशा फैलाने के लिए वह करेगी। चूंकि प्रदेश प्रभारी बदलने के बाद पहले राजनीतिक शक्ति परीक्षण का सामना कांग्रेस करने जा रही है इसलिए इन उपचुनावों में जीत-हार का बावरिया के मनोबल पर कुछ न कुछ असर अवश्य पड़ेगा। चित्रकूट में नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है और यहां कांग्रेस के सामने सबसे बड़ी चुनौती पूर्व में कांग्रेस विधायक रहे और वर्तमान में शिवराज सरकार के राज्यमंत्री संजय पाठक से मिलने वाली है। चूंकि कांग्रेसियों से उनके तार गहरे तक जुड़े हुए हैं इसलिए देखने की बात यही होगी कि कांग्रेस अपनी कमजोर कडिय़ों को उनकी सेंधमारी से कैसे बचा पाती है। जहां तक मुंगावली का सवाल है यह सीट क्षेत्रीय कांग्रेस सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री सिंधिया के लिए प्रतिष्ठा की बन गई है। उन्हें हर हाल में यहां जीतना ही होगा ताकि भाजपा उन्हें आगामी लोकसभा चुनाव में पराजित करने का जो दावा कर रही है उसकी हकीकत सामने आ जाए। चूंकि सिंधिया परिवार के विश्वस्त महेंद्र सिंह कालूखेड़ा के निधन से यह सीट खाली हुई है इसलिए इसे बचाना सिंधिया की प्रतिष्ठा से जोड़कर देखा जा रहा है। सिंधिया स्वयं उसी पैटर्न पर लडऩे जा रहे हैं जिस पैटर्न पर वे अपना चुनाव लड़ते हैं। इसके लिए उन्होंने अभी से मुंगावली क्षेत्र को 29 सेक्टरों में बांट दिया है और वहां एक-एक नेता को सुनिश्चित जिम्मेदारी इस निर्देश के साथ दी गई है कि अब वह मतदान तक उन जगहों पर ही ज्यादा ध्यान दें जिनकी उन्हें जिम्मेदारी सौंपी गई है। लगभग 250 मतदान केंद्रों पर प्रति मतदान केंद्र 10 कार्यकर्ताओं यानी कुल मिलाकर ढाई हजार कार्यकर्ताओं की तैनाती कर दी गई है। इन सभी से सिंधिया स्वयं सीधे संपर्क में रहेंगे।

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