Sunday, 8 October 2017

15 हजार के कर्ज मे डूबा हर इन्सान

15 हजार के कर्ज मे डूबा हर इन्सान मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के सत्ता पर काबिज होने के साथ ही जो उनकी धर्मपत्नी श्रीमती साधना सिंह द्वारा अपनी पहचान छुपाकर डम्पर खरीदने का जो खेल खेलकर जो संदेश इस प्रदेश की जनता को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के पूत के पांव पालने में दिखाने का जो काम किया था। उनके इस संदेश बाद से भ्रष्टाचार की जो गंगोत्री जो इस प्रदेश में ऊपर से लेकर नीचे तक बही उसके चलते फर्जी आंकड़ों के सहारे विकास तो खूब हुआ और इस विकास के लिये तत्कालीन यूपीए सरकार और वर्तमान मोदी सरकार के शासनकाल के दौरान करोड़ों रुपये प्रदेश की येाजनाओं के लिये राशि आई लेकिन उसके बाद भी यह प्रदेश डेढ़ लाख करोड़ रुपये का कर्जदार बन गया और स्थिति यह है कि प्रदेश का हर नागरिक आज 15 हजार रुपये व्यक्तिगत कर्जदार बन गया। लेकिन इसके बाजवूद भी प्रदेश की सत्ता के मुखिया शिवराज सिंह चौहान इस प्रदेश में सबका विकास सबके साथ करने का ढिंढोरा पीटते रहे। शिवराज सरकार में विकास कितना हुआ इसकी पोल नीति आयोग की हाल ही में आई रिपोर्ट से इस बात का खुलासा हो गया और उसमें यह साफ हो गया कि कृषि के अलावा किसी भी सेक्टर में काम धरातल पर नहीं बल्कि कागजों में हुआ है, लेकिन जिन किसानों के कृषि सेक्टर में काम होने की बात नीति आयोग की रिपोर्ट में की गई है वह भी कहां हुए, यदि वह काम हुए होते तो शायद किसानों में इतना आक्रोश नहीं होता कुल मिलाकर राज्य में विकास के नाम पर भ्रष्टाचार की गंगोत्री इस तरह से बही कि उससे जनता को तो कोई लाभ नहीं हुआ बल्कि भाजपा के नेताओं, जनप्रतिनिधियों और मुख्यमंत्री के चहेते अधिकारियों की जरूर स्थिति सुधरी है, शायद यही वजह है कि आज भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष द्वारा दिये गये अबकी बार 200 पार के टारगेट को पूरा करने में स्वयं शिवराज को मेहनत मशक्कत करनी पड़ रही है यदि सबकुछ ठीकठाक होता तो जितनी हाय तौबा इन दिनों सत्ता और संगठन के सुधार को लेकर मची हुई है, उतनी चिंता शायद मुख्यमंत्री के चहेते अधिकारियों को लेकर किसी को दिखाई नहीं दे रही है, इन्हीं भ्रष्ट अधिकारियों के चलते राज्य की राजनीतिक स्थिति गड़बड़ाई है कहने को जरूर 13 वर्षों से मुख्यमंत्री पद पर शिवराज सिंह अब सरकारी विज्ञापनों और सरकारी आयोजनों में अपने मनमोहक छवि वाले बैनर पोस्टरों और विज्ञापनों को देखकर अपने लोकप्रिय होने का दंभ पाले रहे, लेकिन स्थिति यह है कि उनकी लोकप्रियता आज जमीनी स्तर पर दिखाई नहीं दे रही है और संघ के द्वार कराये गये इस सर्वे से इस बात का खुलासा हुआ कि यदि शिवराज सिंह के नेतृत्व में चुनाव लड़ा जाएगा तो भारतीय जनता पार्टी को चौथी बार सरकार बनाने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है, क्योंकि एक तरफ व्यापं के कारण प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान की छवि को नुकसान हुआ और अब किसान आंदोलन से निपटने में नाकामयाब हुए शिवराज सिंह की लोकप्रियता का ग्राफ तेजी से नीचे गिर रहा है, इसी बात को लेकर संघ चिंता में है और वह यह मान रहा है कि अगर कांग्रेस के बड़े नेता प्रदेश में एकजुट होकर चुनावी समर में उतरते हैं तो लगातार चौथी बार भाजपा की जीत मुश्किल होगी ऐसे में संघ में दो पहलुओं पर विचार करना शुरू कर दिया है कि या तो भाजपा का चेहरा बदल दिया जाए या फिर बिना किसी चेहरे के चुनाव लड़ा जाये? हाल ही में प्रदेश के राजनैतिक गलियारों में इन दिनों एक सर्वे को लेकर जोर-शोर से चर्चा हो रही है। इस सर्वे में मप्र में सत्ता पर काबिज भाजपा और सीएम शिवराज सिंह की नींद उड़ा दी है। ये कथित सर्वे किसी एजेंसी या समाचार पत्र या टीवी चैनल का नहीं है। बल्कि इस सर्वे के बारे में कहा जा रहा है कि ये सर्वे राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने कराया है। इस आंतरिक सर्वे ने जहां चौथी बार मप्र की सत्ता पर काबिज होने का सपना देख रही भाजपा को परेशानी में डाल दिया है, तो संगठन को सूझ नहीं रहा है कि आखिर कैसे वो हालात अपने पक्ष में लाएं। इस सर्वे के बारे में कहा जा रहा है कि संघ के इस आंतरिक सर्वे में कहा गया है कि अगर आज की स्थिति में चु नाव करा लिए जाएं तो भाजपा की सरकार गिर सकती है। आज की स्थिति में चु नाव कराए जाएं तो सरकार बनती नहीं दिख रही - दरअसल, जिस सर्वे की चर्चा इन दिनों राजधानी के सियासी हलकों में सुनने को मिल रही है। बताया जा रहा है कि संघ इस सर्वे के बारे में कहा रजा है कि संघ ने मौज्ूदा हालात के आधार पर किए सर्वे में पाया कि 2013 के तमाम के तमाम प्रत्याशियों को अगर आज की स्थिति में चुन ाव कराया जाए तो भाजपा की सरकार बनती नहीं दिखाई नहीं दे रही है। सर्वे में वर्तमान भाजपा विधायक हारते हुए दिखाई दे रहे हैं। संघ के सर्वे के हिसाब से भाजपा को अगले चुनाव में 100 से कम सीटें हासिल होती दिखाई दे रही हैं। जबकि मप्र में सरकार बनाने के लिए 230 में से 116 सीटों की जरूरत होती है। खास बात ये है कि जिन विधायकोकं की हार की रिपोर्ट सर्वे में आ रही है, उसमें शिवराज के कद्दावर मंत्री और वरिष्ठ विधायक शामिल हैं। फौरी तौर पर भाजपा ने इन हालातों से पार पाने के लिए जहां संगठन में कार्यकर्ताओं को महत्व देने की रणनीति बनाई है। तो दूसरी तरफ सरकारी नुकान की चिंता किए बिना सरकारी खजाना चुनाव जीतने के लिए लुटाने की रणनीति तैयार की जा रही है। संगठन ने सरकारी मशीनरी की मदद से जमानत को भाजपा के पक्ष में लाने पर भी रणनीति तैयार करना शुरू कर दिया है। वहीं करीब 20 हजार कार्यकर्ताओं को मोटरसाइकिल और पचास हजार रुपये भी देने की तैयारी की जा रही है। इस कतिपय सर्वे से मप्र भाजपा के होश उड़े हैं क्योंकि पिछले दिनों तीन दिवसीय मप्र प्रयास पर आए अमित शाह अबकी बार 200 पार का लक्ष्य दिया है। लेकिन इस सर्वे में तो भाजपा 100 के पार होती नहीं दिखाई दे रही है। इस कथित सर्वे के साथ राजनैतिक हलकों में चर्चा है कि संघ को हिदायत के बाद सीएम शिवराज सिंह लगातार मप्र भाजपा संगठन के साथ गुचपुच बैठकें कर रहे हैं और हालात से निपटने की रणनीति पर विचार कर रहे हैं। सीएम शिवराज सिंह सहित प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार चौहान, प्रदेश महामंत्री सुहास भगत और शिवराज सिंह के विश्वास पात्र नेता रणनीतिक तैयारियों में जुट गए हैं। क्योंकि इन सभी नेताओं को अब शिवराज सिंह के शासनकाल के दौरान जिस तरह के भ्रष्टाचार की गंगोत्री अके चलते इस प्रदेश में विकास के नाम पर जो खेला गया उसे समेटने में काफी समय लगेगा। देखना अब यह है कि इन सभी नेताओं की रणनीति क्या शिवराज सिंह के नेतृत्व में चौथी बार सत्ता हासिल कर पाती है या नहीं हालांकि संघ से लेकर स्वयं शिवराज सिंह चौहान इस बात से भलीभांति परिचित हैं कि अब उनके चेहरे के नाम पर चुनावी समर में नहीं उतरा जा सकता है, तभी तो शिवराज सिंह कुछ न कुछ ऐसा करने में लगे हुए हैं। कुल मिलाकर प्रदेश में 1998 की तरह दिग्विजय सिंह के शासनकाल की परिस्थितियां शिवराज के सामने निर्मित होती नजर आ रही हैं?

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