Sunday, 8 October 2017

मध्यप्रदेश के द्वारा किये गये कामों का ढिंढोरा


उत्तरप्रदेश में सम्पन्न हुए विधानसभा चुनाव के दौरान जिस बुंदेलखण्ड पैकेज के कामों को लेकर देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी मध्यप्रदेश के द्वारा किये गये कामों का ढिंढोरा पीटते हुए उत्तरप्रदेश की सरकार पर यूपीए सरकार के दौरान मिले बुंदेलखण्ड पैकेज में तत्कालीन समाजवादी पार्टी की सरकार के द्वारा फर्जीवाड़ा करने का आरोप लगाने में नहीं चूके लेकिन जब वह मध्यप्रदेश सरकार के कामों की सफलता को लेकर ढिंढोरा पीट रहे थे तो शायद उन्हें यह नहीं मालूम नहीं था कि जिस मध्यप्रदेश में उनकी ही अपनी भारतीय जनता पार्टी की सरकार है हालांकि प्रदेश की भाजपा सरकार राज्य की जनता को भय, भूख ओर भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन देने के वायदे के साथ सत्ता पर काबिज तो जरूर हुई लेकिन इन 14 वर्षों के शासनकाल में और खासकर मुख्यमंत्री शिवराज ङ्क्षसह चौहान के शासनकाल के दौरान इस प्रदेश में चलाई गई हर सरकारी योजनाओं में प्रदेश में सक्रिय मंत्रियों, अधिकारियों, सत्ता के दलालों और ठेकेदारों के रैकेट के द्वारा जो हेराफेरी और गड़बड़झाला किया गया शायद उसकी जानकारी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को नहीं थी तभी तो वह मध्यप्रदेश के हिस्से के बुंदेलखण्ड पैकेज के सफलतम क्रियान्वयन को लेकर शिवराज सरकार की तारीफ कर रहे थे तो वहीं उत्तरप्रदेश की तत्कालीन समाजवादी पार्टी पर भ्रष्टाचार का आरोप लगा रहे थे लेकिन इसकी जमीनी हकीकत यह है कि मध्यप्रदेश के वर्षोँ से उपेक्षित उस बुंदेलखण्ड क्षेत्र के साथ हमेशा भेदभाव की नीति अपनाई गई और इस क्षेत्र के लिये बनी तमाम योजनाओं में जमकर फर्जीवाड़ा किया गया तभी तो इस क्षेत्र की शिवराज सरकार के उस सबका साथ, सबका विकास के नारे के साथ क्षेत्र का तो विकास नहीं हुआ हाँ यह जरूर है कि इस नारे को सार्थक करते हुए इस क्षेत्र के नेताओं और अधिकारियों ने जमकर इस बुंदेलखण्ड पैकेज में गड़बड़झाला किया गया। हालांकि इस गड़बड़झाले की सरकारी स्तर पर जांच कराई गई और उसमें भ्रष्ट अधिकारियों को क्ल्ीन चिट देने का काम भी इस शासन की कार्यशैली के अनुसार दे दी गई लेकिन जब यह बुंदेलखण्ड पैकेज में जमकर हुए भ्रष्टाचार का मामले को लेकर न्यायालय में दस्तक दी गई तब जबलपुर हाईकोर्ट के निर्देश पर मुख्य तकनीकी परीक्षक (सीटीई) ने जांच की और जांच के बाद अपनी रिपोर्ट राज्य शासन को सौंपी इस रिपेार्ट में गड़बडिय़ों का जो खुलासा किया गया वह चौंकाने वाला है ही तो वहीं वोट की खातिर भाजपा को छोड़ दूसरी पार्टियों की सरकारों पर बिना जानकारी लिये आरोप लगाने वाले प्रधानमंत्री की भी विश्वसनीयता पर प्रश्न खड़े होते हैं? जिस बुंदेलखण्ड पैकेज को लेकर प्रधानमंत्री और भाजपा के नेता उत्तरप्रदेश चुनाव में मध्यप्रदेश के कामों की सराहना करते हुए नजर आ रहे थे उसी मध्यप्रदेश में बुंदेलखण्ड पैकेज के तहत जिस तरह का गोलमाल और घोटाला हुआ वह अपने आपमें बुंदेलखण्ड में अभी तक हुए भ्रष्टाचार के मामले मं एक इतिहास है। लेकिन मजे की बात यह है कि भ्रष्टाचारियां को बक्शा नहीं जाएगा का जुमला इस प्रदेश की जनता को सुनाने वाले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के कार्यकाल में बुंदेलखण्ड पैकेज में गड़बड़झाला और फर्जीवाड़ा करने वाले अधिकारियों के साथ कोई कार्यवाही नहीं की गई मजे की बात तो यह है कि इनमें से कई अधिकारी सेवानिवृत्त हो चुके हैं और कई होने की कगार पर हैं, लेकिन फिर भी बुंदेलखण्ड के विकास के नाम पर भाजपा सरकार नहीं बल्कि यूपीए सरकार के द्वारा दिये गये इस बुंदेलखण्ड पैकेज में हुए फर्जीवाड़े की हाईकोर्ट के निर्देश पर मुख्य तकनीकी परीक्षक (सीटीई) ने जो जांच रिेपोर्ट शासन को सौंपी है वह रिपोर्ट अन्य भ्रष्टाचार की रिपोर्टों की तरह आज भी धूल खा रही है। यूपीए सरकार के कार्यकाल के दौरान बुंदेलखण्ड पैकेज के तहत पशुपालन विभाग के हिस्से में आई 81 करोड़ की राशि में भी जमकर बंदरबांट हुआ। विभाग ने लोगों का जीवन स्तर सुधारने के लिए साढ़े चार करोड़ से अच्छी नसल की बकरियां और भैंस वंश के नस्ल सुधार के लिए मुर्रा पाड़ा बांटने की योजना बनर्इा थी। अफसारों ने इन्हें कागजों में ही बांटकर पूरी योजना पर पलीता लगा दिया। हाईकोर्ट, जबलपुर के निर्देश पर मुख्य तकनीकी परीक्षक (सीटीई) ने जांच के बाद अपनी जो रिपेार्ट राज्य शासन को सौंपी हैं, उसमें गड़बडिय़ों का खुलासा किया गया है। रिपोर्ट के अनुसार, हितग्राहियों की जो बकरियंा और मुर्रा पाड़े बांटे गए, वह कमजोर थे। बकरियां तो दस दिन बाद ही मरने लगीं। इनकी मृत्यु पर हितग्राहियों को बीमा भी नहीं मिला। वजह संबंधित हितग्राही का नाम पशुपालन विभाग की सूची में शामिल ही नहीं था। इस बुंदेलखण्ड पैकेज में जिम्मेदार अधिकारियों ने जिस तरह से घोटाला किया उसके चलते बुंदेलखण्ड के पुराने भ्रष्टाचार के रिकार्ड को भी तोड़ दिया गया, हालांकि बुंदेलखण्ड में सरकारी योजनाओं में भ्रष्टाचार की यदि बात करें तो इसी बुंदेलखण्ड के टीकमगढ़ जिले में नहर के चोरी हो जाने की घटना भी एक भ्रष्टाचार का इतिहास है, इससे भी कुछ कम शिवराज सरकार में बुंदेलखण्ड के इस पैकेज में भी फर्जीवाड़े और भ्रष्टाचार के नाम पर शिवराज सरकार की तरह कई रिकार्ड स्थापित किये हैं, भ्रष्टाचार के आंकड़ों पर यदि गौर करें तो बुंदेलखण्ड पैकेज के तहत बकरियों और मुर्रा पाड़े बढ़ाने पर जिलेवार जो राशि खर्च की गई उसके तहत टीकमगढ़ में 200 इकाई राशि 6499600, सागर में 200 इकाई राशि 6499600, छतरपुर में 200 इकाई राशि 6499600, पन्ना में 180 इकाई राशि 8846640, दतिया में 166 इकाई राशि 5334667 तथा दमोह में 195 इकाई राशि 6337116 की राशि खर्च की गई। यही नहीं इस राशि में से कुछ राशि तो भूसे के नाम पर भी खर्च कर डाली। जांच रिपोर्ट में बकरियों की मृत्यु दर सबसे अधिक छतरपुर एवं टीकमगढ़ जिले में थी, मुर्रा पाड़े की मृत्यु दर का प्रतिशत पांच से दस प्रतिशत रहा, इससे यह पता चलता है कि हितग्राहियों को स्वस्थ्य मुर्रा व बकरियां प्रदान नहीं की गईं। बुंदेलखण्ड पैकेजे के दौरान सरकार द्वारा हितग्राहियों को दिये गये बकरियों और पाड़े सहित किस जिले में कितने पशु मरे उसके अनुसार छतरपुर जिले में 15.44 प्रतिशत बकरियां तो 5.88 मुर्रा पाड़ा, इसी प्रकार टीकमगढ़ में 22.00 प्रतिशत बकरिया मरी तो वहीं 5.88 प्रतिशत मुर्रा पाड़ा मरने का प्रतिशत रहा। लगभग यही स्थिति सागर की भी रही यहां 6.00 प्रतिशत बकरियां मरी तो मुर्रा पाड़ों की मरने की संख्या 4.00 रही, पन्ना में भी मृत बकरियों का प्रतिशत 5.00 रहा तो मुर्रा पाड़ा का 10.00 रहा, ठीक यही स्थिति दतिया जिले की रही जहां मृत बकरियों की संख्या 4.00 प्रतिशत रही तो मुर्रा पाड़ों की मृत्यु दर 09.00 रही। सटीई द्वारा शासन को सौंपी गई रिपोर्ट के अनुसार योजना के अनुसार राशि सीधे हितग्राही के खाते में जमा की जाना थी लेकिन छतरपुर जिले में 83 लाख 71 हजार 665 रुपये अनुदन की राशि उप संचालक पशु चिकित्सा सेवायें छतरपुर द्वारा पशु चिकित्सा सहायक शल्यज्ञों के निजी खाते में जमा की गई इसी प्रकार से सागर जिले में बकरियों के लिये जो राशि 54.5 लाख रुपये एवं मुर्रा पाड़े की राशि 24.45 लाख रुपये विकासखण्ड पशु चिकित्सा विस्तार अधिकारियों के निजी नाम से खोले गये खाते में जमा की गई। इस बुंदेलखण्ड पैकेज में जो गड़बड़ी का खेल चला उसके तहत बीमा अंतर की राशि हितग्राहियों को वापस दिलाने के लिये किसी भी उपसंचालक द्वारा कार्यवाही नहीं की गई, मजे की बात यह है कि बुंदेलखण्ड पैकेज में हुए इस फर्जीवाड़े की सीटीई के द्वारा दी गई रिपोर्ट आज भी धूल खा रही है।

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